शनिवार, 6 सितंबर 2008

क्या मैं आपका लिंग काट दूं?????


मैंने अपने मामाजी(डा.रूपेश श्रीवास्तव) के पास कुछ समाचार पत्रों की कटिंग्स और कुछ वीडियो क्लिपिंग्स देखी जिनके केंद्र में एक ही समाचार पर जोर था कि कुछ अपराधी किस्म के लोग अच्छे-भले पुरुषों का लिंग काट कर हिजड़ा बना कर अपनी टोली में शामिल कर लेते हैं।
अब मेरी बात को गौर से समझिये कि नुकसान पहुंचाने वाले से बदला लेना एक सहज सी इंसानी फितरत है, क्या आज तक आपने कोई समाचार देखा या पढ़ा कि किन्ही हिजड़ों ने जिस पुरुष का लिंग काटा था उसने बदला लेने की नियत से उन हिजड़ों में शामिल होकर उन हिजड़ों की हत्या कर दी हो या मारा-पीटा तक हो। क्यों????? क्या आपका लिंग मैं काट दूं तो आप मुझे जीवित छोड़ेंगे? आपका परिवार मुझे छोड़ देगा? क्या कानून मुझे माफ़ कर देगा? यदि मैं किसी द्स-बारह साल के लड़के का लिंग काट देती हूं तो क्या लिंग कटते ही उसकी याददाश्त भी गुम हो जाती है कि वह अपने माता-पिता के प्यार को भूल जाता है और उनके पास नहीं जाता बल्कि जिसने उसका लिंग काटा है उन्हीं लोगों के साथ उनके समुदाय में बड़े प्रेम से रहने लगता है और जिंदगी भर रहता है? अगर हिजड़े इतने बड़े सर्जन होते हैं जैसा कि उपन्यासकार जान इरविंग के १९९४ में प्रकाशित उपन्यास में उन्होंने लिखा है तो क्यों नहीं हिजड़े पुरुषों का लिंग काटने का झंझट करते हैं बल्कि लड़कियों की योनि की सिलाई कर दें बस मूत्रमार्ग भर छो़ड़ दें तो अधिक अच्छा विकल्प होगा, आपका क्या विचार है इस सुझाव पर? मैं ऐसे हजारों सवाल खड़े कर सकती हूं क्योंकि मैं इस बात के सत्य को जानती हूं और अब मेरी ज़हालत डा.रूपेश श्रीवास्तव द्वारा दी जा रही शिक्षा के प्रकाश से समाप्त हो रही है। सच ये भी है कि लैंगिक लक्षणों की अस्पष्टता को आधार बना कर एक समाज खुद को हजारों पीढ़ियों से जिंदा रखे है और कुछ क्रूर किस्म के खूंख्वार सफेदपोश लोग हमारे जैसे अभागे लैंगिक विकलांगों को "थर्ड सेक्स" की मान्यता दिलाने की वकालत कर रहे हैं ताकि उनकी हैवानियत भरी कुंठित यौन वरीयताएं (sexual preferences) कानूनी जामा पहना कर एक तरफ सुरक्षित रख दी जाएं। हमारे जैसे अभागे बच्चों को पहले तो पहले तो अपनी गलीज़ यौन कुंठा के लिये ऐसे लोग इस्तेमाल करते रहे और अब हमें बनाया जा रहा है "एड्स लाबी" के प्रचार का सामान। कोई तो इसे रोको..............

लैंगिक विकलांगों का गणेशोत्सव और हिंदू-मुस्लिम एकता


आजकल महाराष्ट्र में हर तरफ गणपति महोत्सव की धूम मची हुई है। इस देश के लोगों की फ़ितरत है कि कितनी भी समस्याएं हों फ़िर भी उत्सव मनाने के लिये अतिरिक्त ऊर्जा जगा ही लेते हैं। अपने अस्तित्त्व और नागरिकता के सवाल से जूझते हुए लैंगिक विकलांग समाज में भी यही बात है क्योंकि आखिर हैं तो ये भी शुद्ध भारतीय और इंसान भी। इसी के चलते मुंबई के उपनगर भिवंडी में गायत्री नगर क्षेत्र के कुछ लैंगिक विकलांग मित्रों ने इस बार एक मित्रमंडल का गठन कर पांच दिवसीय गणपति स्थापना करी। विदित हो कि इस क्षेत्र में बहुत सारे लैंगिक विकलांग रहते हैं। इस "किन्नर ग्रुप औफ़ गायत्रीनगर" नामक मित्र मंडल में शामिल लोगों में प्रमुख रानी, टीना, रोशनी, चंदा, नगीना, शबनम, सोनी, अंजली, उबाली आदि लैंगिक विकलांग हैं। यह इन लोगों का प्रथम गणेशोत्सव है। इसके लिये ये लोग गायत्रीनगर से पांच किलोमीटर दूर कुंभारवाड़ा से गणेश भगवान की मूर्ति को पूरे धूमधाम और उत्साह उल्लास से नाचते-गाते हुए लेकर आये। इस दौरान जो एक विशेष जिक्र करने वाली बात है कि चूंकि रमज़ान का महीना चल रहा है इस वजह से इस पांच किलोमीटर लंबे रास्ते में कई जगह पर इलाके के मुस्लिम भाईयों ने इन गणे भक्त लैंगिक विकलांगो का शरबत पिला कर स्वागत करा और स्थापना के स्थान तक साथ आकर इन लोगों का उत्साह बढ़ाया। कुल मिला कर यह उत्सव गणेशोत्सव के साथ ही हिंदू-मुस्लिम एकता का ही माहौल प्रस्तुत कर रहा है।

बुधवार, 3 सितंबर 2008

एक मैं और एक तू.....





एक विचार जो कि भीतर तक झिंझोड़ता रहता है कि सुंदरता क्या होती है और वो भी स्त्रैण सुंदरता। मैं जो दो चित्र प्रेषित कर रही हूं उन्हें जरा गौर से देखिये आपको अंतर स्पष्ट समझ में आ जाएगा कि एक व्यक्तित्त्व लाचारी, गरीबी, मजबूरी, जबरन मुस्कराने के प्रयास से भरा है और वहीं दूसरी ओर है अमीरी, आनंद, मुक्त हास्य, कुंठामुक्त। क्यों????? बस आधार है खूबसूरती , जबकि दोनो ही लैंगिक विकलांग हैं। एक गुमनाम है और दूसरा नामचीन "लक्ष्मी" जिन्हें आप सलमान खान के कार्यक्रम दस का दम से लेकर डिस्कवरी व नेशनल ज्योग्राफ़िक चैनल तक के कार्यक्रमों में देख चुके हैं। यह सब देख कर लगता है कि नाखूनों से अपने ऊपर की त्वचा और मांसपेशियों को खुरच-खुरच कर उधेड़ दूं ताकि मन इस असुंदरता की कुंठा से मुक्त हो जाए।

सोमवार, 1 सितंबर 2008

लैंगिक विकलांग व्यक्ति में कुछ अतिमानवीय अथवा दैवीय शक्ति होती है?


क्या आपको भी ऐसा लगता है कि लैंगिक विकलांग व्यक्ति में कुछ अतिमानवीय अथवा दैवीय शक्ति होती है? मुझे अक्सर जो अनुभव होते हैं वह सामान्य तो किसी कोने से नहीं होते लेकिन इन बातों को मैने अब समझ लिया है कि परिवर्तन की लहर में जैसे जैसे जोर आयेगा लोगों का व्यवहार बदलेगा लेकिन मुझे अजीब लगता है जब अत्यंत उच्च शिक्षित लोग भी मेरे जैसे अधूरे इंसान को देख कर ऐसे श्रद्धापूर्वक व्यवहार करने लगते हैं बच्चों के सिर पर हाथ रखने का आग्रह करने लगते हैं जैसे मैं कोई दिव्य शक्ति से संपन्न हूं। मैं रजनीश भाई और अपने गुरुदेव(मामाजी) डा.रूपेश श्रीवास्तव से आज यह पूछ रही हूं कि क्या उन्हें मुझमें कुछ दिव्यता दिखती है? क्या मैं साधारण इंसानों की तरह नहीं हूं? जिन्हें रजनीश भाई से आशीर्वाद लेना चाहिये वो मुझसे आशीर्वाद लेना चाहते हैं क्या विचित्र लोग हैं?
 

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आयुषवेद by डॉ.रूपेश श्रीवास्तव