मंगलवार, 30 दिसंबर 2008

ज्योतिष शास्त्र ने भी लैंगिक विकलांगों को नकार दिया है

कल मैं ने देखा कि भाई डा.रूपेश कम्प्यूटर पर किसी बच्चे की कुंडली बना कर कुछ देख रहे थे। भला कौन ऐसा है जो भविष्य न जानना चाहता होगा तो मैंने भी उस कुंडली नामक साफ़्टवेयर को समझने का प्रयास करा, जब भाई मरीजो की दवाओं में जुट गये लेकिन मैं तो हतप्रभ रह गयी कि ज्योतिष शास्त्र मेरे जैसे बदनसीबों के लिए है ही नहीं क्योंकि उसमें जातक के जन्म समय, स्थान आदि के विवरण के साथ मात्र लिंग के विवरण में पुरुष/स्त्री ही है। मैंने स्वयं को दो बार इसे आजमाया एक बार पुरुष लिख कर और दूसरी बार स्त्री लिख कर और पाया कि ऐसा करने पर मात्र लिंग का अंतर होने से जातक के फलादेश में अंतर है, भविष्य में अंतर है। अब मैं सोच रहीं हूं कि ये वही ज्योतिष शास्त्र है जिसके बारे में तमाम विद्वान इसकी गहाराई , सत्यता और प्रामाणिकता के लिये बह्स दर बह्स करे जाते हैं लेकिन यह तो मात्र लैंगिक अंतर की गाढ़ी सी लकीर ही देख कर भ्रमित हो जा रहा है। मेरा उन तमाम हिंदी ब्लागरों से अनुरोध है कि इस विषय पर समुचित स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने का साहसपूर्ण शोध करें न कि चुप्पी साध जाएं वरना मेरे लिए ज्योतिष शास्त्र और पब्लिक टायलेट में कोई अंतर न रह जाएगा क्योंकि वहां भी हमारे लिये ऐसा ही संकट और भ्रम है।

शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008

हमारी प्यारी मनीषा दीदी का जन्मदिन

अर्धसत्य,आयुषवेद और भड़ास परिवार ने मिल कर हमारी प्यारी मनीषा दीदी का जन्मदिन पूरे जोरशोर से मनाया। ये उनका पहला अनौपचारिक जन्मोत्सव रहा जिसमें कि उनके समुदाय से इतर अन्य लोग शामिल थे। एक तरफ़ दीप प्रज्ज्वलित कर के दीदी को रक्षा सूत्र बांधा, आरती उतार कर उनके उत्तम स्वास्थ्य व दीर्घायु की ईश्वर से प्रार्थना करी वहीं दूसरी ओर मोमबत्तियां फ़ूंक कर केक काटा गया( एक दूसरे के ऊपर केक उछाले भी गये मस्ती में आकर और पूरे घर में क्रीम ही क्रीम फर्श से लेकर दीवारों तक :))
आप ये सब झलकियां देख सकते हैं इन लिंक्स पर क्लिक करके.........
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शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008

हिंदी ब्लागिंग ने दिया हिजड़ा होने का दंड/भड़ास से लैंगिक विकलांग मनीषा नारायण सहित तीन की सदस्यता समाप्त

वैसे भी मैंने जीवन में इतने दुःख तकलीफ़ और तिरस्कार को भोग लिया है कि अब तो यदि कुछ भी ऐसा हो तो कोई आश्चर्य नहीं होता लेकिन अब भी कहीं मन में कुछ मानवीय कमजोरियां शेष हैं जिनके कारण मैं कुछ स्थायी धारणाएं बना लेती हूं किसी भी व्यक्ति के बारे में, मुझे याद आते है वो दिन जब लगभग साल भर पहले मुझे भाई डा.रूपेश श्रीवास्तव अपने घर लेकर आये थे किस तरह हाथ पकड़ कर कंम्प्यूटर पर जबरदस्ती बैठाया था मैं डर रही थी कि कहीं कुछ खराब न हो जाए। हिंदी कम आती थी बस कामचलाऊ या फिर हिंदी में दी जाने वाली गन्दी गन्दी गालियां। भाई ने टाइप करना सिखाया तो अजीब लगा कि अंग्रेजी के की-बोर्ड से हिंदी और तेलुगू व तमिल कैसे टाइप हो रहा है। एक उंगली से टाइप करी पोस्ट शायद भड़ास पर अभी भी अगर माडरेटर भाई ने हटा न दी हों तो पड़ी होगी, एक कुछ लाइन की पोस्ट टाइप करने में ही हाथ दर्द करने लगा था। लिखना सीखा, हिंदी सीखी लेकिन मौका परस्ती न सीख पायी। एक पत्रकार और ब्लागर मनीषा पाण्डेय के नाम से समानता होने के कारण भड़ास पर बड़ा विवाद हुआ जिसमें कि तमाम हिंदी के ब्लागर उस लड़की की वकालत और भड़ास की लानत-मलानत करने आगे आ गये। मैंने सब के सहयोग से अपना वजूद सिद्ध कर पाया। मैं लिखती रही, "अर्धसत्य" (http://adhasach.blogspot.com) बनाया भाई साहब ने सहयोग करा। कुछ दिन पहले की बात है कि जब भड़ास के मंच पर एक सज्जन(?) ने डा.रूपेश श्रीवास्तव पर एक पोस्ट के रूप में निजी शाब्दिक प्रहार करा कि वे आदर्शवाद की अफ़ीम के नशे में हैं वगैरह...वगैरह। मैंने, भाईसाहब, मुनव्वर सुल्ताना(इन्हे तो भड़ास माता कह कर नवाजा जाता था) ने इसके विरोध में अपनी शैली में लिखा। अचानक इसका परिणाम जो हुआ वह अनपेक्षित था कि भड़ास पर से मेरी, मुनव्वर सुल्ताना और मोहम्मद उमर रफ़ाई की सदस्यता को बिना किसी संवाद या सूचना अथवा आरोप के बड़ी खामोशी से समाप्त कर दिया गया। इससे एक बात सीखने को मिली कि लोकतांत्रिक बातें कुछ अलग और व्यवहार में अलग होती हैं। माडरेटर जो चाहे कर सकता है इसमें लोकतंत्र कहां से आ गया, उनका जब तक मन करा उन्होंने वर्चुअली हमारा अस्तित्त्व जीवित रखा जब चाहा समाप्त कर दिया। मुझे अगर हिजड़ा होने की सजा दी गयी है तो मुनव्वर सुल्ताना और मोहम्मद उमर रफ़ाई को क्या मुस्लिम होने की सजा दी गयी है? यदि इस संबंध में भड़ास के ’एकमात्र माडरेटर’ कुछ भी कहते हैं तो वो मात्र बौद्धिकता जिमनास्टिक होगी क्योंकि बुद्धिमान लोगों के पास अपनी हर बात के लिये स्पष्टीकरण रेडीमेड रखा होता है बिलकुल ’एंटीसिपेटरी’..... वैसे तो चुप्पी साध लेना सबसे बड़ा उत्तर होता है बुद्धिमानों की तरफ से । आज मैं एक बात स्पष्ट रूप से कह रही हूं कि सच तो ये है कि न तो मुनव्वर सुल्ताना का वर्चुअली कोई अस्तित्त्व है और न ही मोहम्मद उमर रफ़ाई के साथ ही मनीषा नारायण का बल्कि ये सब तो फिजिकली अस्तित्त्व में हैं और वर्चुअली अस्तित्त्वहीन और न ही इनकी कोई सोच है अतः इन्हें किसी मंच से हटा देना इनकी हत्या तो नहीं है। मुझे और मेरे भाई को अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है शायद हो सकता है कि आने वाले समय में हम सब भी बुद्धिमान हो सकें और हिंदी ब्लागिंग के अनुकूल दिमाग और दिल रख सकें।
आदतन ही सही लिखूंगी जरूर
जय जय भड़ास

बुधवार, 17 दिसंबर 2008

हिंदी ब्लागरों में मनीषा नारायण ने कोहराम मचा रखा है

दीदी का लिखना बड़ा ही कड़ा रहा है हमेशा से जैसा कि मैं जानता हूं। इन बातों के पीछे कि वे इतनी प्रेम से भरी होने के बाद भी अक्सर नाराज क्यों हो जाती हैं उसका कारण उनका अतीत रहा है। जो लोग उनसे अपेक्षा करते हैं कि मनीषा! तुमने हिंदी सीख लिया अब ब्लागिंग करती हो तो अपने सारे अतीत को भूल जाओ तत्काल जिससे कि तुम कभी व्यथित रही हो। जिंदगी की रेलगाड़ी में भी सीट पर जगह बनाने के लिये धक्का-मुक्की करनी पड़ती है इन्हें सहज ही कुछ नहीं मिला कभी भी। हिंदी ब्लागरों के तो नाक-भौं सिकुड़ गये जब पता चला कि एक "हिजड़ा" तालियां बजाना छोड़ कर उन शरीफों के संग सायबर जगत में ब्लागिंग करेगा। बहुत तिरस्कार सहना पड़ा इस आभासी दुनिया में भी ,एक ब्लाग है "भड़ास" जो कि काफ़ी कुख्यात है अपनी भाषा के कारण लेकिन वह मंच अश्लील हरगिज नहीं है। उस मंच पर मैं दीदी को ले गया सद्स्यता दी उन्होंने एक उंगली से किसी तरह लिखना शुरू करा। वहां आरोप लगाया तमाम नामचीन ब्लागरों ने खुल कर कि प्रमाण दिया जाए कि मनीषा नारायण का अस्तित्त्व है भी या काल्पनिक हैं फिर हैं तो लैंगिक विकलांग हैं या नहीं.........। एक बार फिर जब वणिक सोच ने भड़ास पर कब्जा जमा लिया तो अचानक वहां से मनीषा दीदी की सदस्यता को समाप्त कर दिया गया। इसे कहते हैं उसे हाशिये से भी बेदखल कर दो जो अब तक हाशिये पर था और ये शर्त रख दो कि बिलकुल भी आवाज न करे अगर गाली दी या नाराजगी व्यक्त करी तो गंदे मान लिये जाओगे और कहा जाएगा कि यही तुम्हारी औकात है वगैरह वगैरह...।
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अब दोबारा इंतजार है उस घेराबंदी का जब तमाम ब्लागिंग गिरोह एग्रीगेटर्स पर भी हमारे जैसे लोगों को प्रतिबंधित करा दें। हम अभी से मानसिक तौर पर तैयार हैं पर किसी के आगे गिड़गिड़ाएंगे नहीं।

गुरुवार, 4 दिसंबर 2008

ब्लागिंग से बदलाव की शुरूआत हो गयी है

आज मनीषा बहन ने मुझे बातों बातों में बताया कि उन्हें एक भाई ने एक मेल करा था जिसमें उस युवा भाई ने लिखा था कि मैं चाहता हूं कि विवाह के बाद मेरा कोई बच्चा लैंगिक विकलांग पैदा हो और मैं उसे खूब लिखा पढ़ा कर डाक्टर, इन्जीनियर या वकील बनाऊं ताकि समाज के सामने एक उदाहरण रख सकूं कि हमारे ये बच्चे किसी से कम नहीं होते हैं। मेरी आंखों में इस भावना के प्रति आदर से कुछ अन्जाने से आंसू आ गये। याद आये मुझे भाई दीनबन्धु जो कि ऐसी ही सोच रखते हुए किसी लैंगिक विकलांग बच्चे को सहर्ष गोद लेना चाहते हैं। अब लग रहा है कि शिक्षा के मार्ग से ब्लागिंग तक आने से बदलाव हो रहे हैं।
 

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