बुधवार, 7 जनवरी 2009

नया साल, नई आशा !!

मानव जीवन की विडंबना है कि हर जगह विविधता होते हुए भी समाज कुछ विविधताओं को नकारता है. इसका सबसे अच्छा उदाहरण है उन लोगों के प्रति समाज का नजरिया जिनको स्त्री या पुरुष नहीं कहा जा सकता है.

ये लोग सामान्य  यौन-आधारित अंतरों से मुक्त ईश्वर की सृष्टि हैं, लेकिन इन लोगों को इस नजरिये से कम ही देखा जाता है. उसके बदले इन को भारतीय समाज में अप्राकृतिक लोगों के रूप में देखा जाता है, जबकि जो चीज "प्रकृतिदत्त" है वह है की "प्राकृतिक" और उसे इसी नजरिये से देखा जाना चाहिये.

डॉ रूपेश जैसे लोगों के कारण लोगों की सोच में बदलाव आने लगा है, और उम्मीद है कि सन 2009 लैंगिक विकलांगो के लिये नई आशा लेकर आया है.


2 टिप्‍पणियां:

Shastri JC Philip ने कहा…

आशा के साथ किसी विषय को देखा जाये तो परिणाम शुभ होता है.

आपने नये साल के बारे में जो कुछ लिखा है उसके लिये बधाई. शुभकामनाये!!

सस्नेह -- शास्त्री

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) ने कहा…

आदरणीय मित्र, समय के आयाम में मेरे सारे संगी हर पल नएपन को इतनी गहराई से महसूस करके जी पा रहे हैं कि दिन महीने साल के पैमाने गुम से हो गये हैं,हर पल आनंदोत्सव है जब हम सब एकत्र हो जाते हैं......
यदि संभव हुआ तो मनीषा दीदी के जन्मदिन का वह वीडियो प्रकाश में लाउंगा जिसमें साए बच्चे मजे कर रहे हैं .....कैसे? ये खुद ही देख लीजियेगा।

 

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आयुषवेद by डॉ.रूपेश श्रीवास्तव