शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

दुनिया बनाने वाले भगवान,अल्लाह,GOD का लिंग-निर्धारण हो गया


ईश्वर की गलती हूं मैं और मेरे जैसे लोग
भड़ास परिवार से जुड़े सभी पुराने लोग जानते हैं कि मैं एक लैंगिक विकलांग(हिजड़ा) हूं लेकिन मेरी इस कमी को मेरे इस परिवार ने कभी मेरे परिचय में आड़े न आने दिया। भड़ास परिवार से दिया गया प्रेम और हमारे बड़े भाई अवतार स्वरूप डा.रूपेश श्रीवास्तव जी ने हमें हमारी परंपरागत पहचान से हट कर जो नई पहचान दी है उसके लिये यदि हम अपनी चमड़ी के जूते भी बना कर उन्हें पहना दें तो कम है। हमारे रिश्ते में इस औपचारिक बकवास की गुंजाइश नहीं है। बात ये है कि मेरे दिमाग में हमेशा से यह सवाल रहा कि दुनिया बनाने वाली शक्ति भी क्या लैंगिकता की मोहताज होगी? या फिर वह एकोSहं बहुस्यामि के विचार के अमीबा या हाइड्रा की तरह बढ़ा होगा? वह क्या है पुल्लिंग? स्त्रीलिंग?? या फिर उभयलिंगी केंचुए की तरह??? या फिर मेरी तरह नपुंसक षंढ??????? भाईसाहब से करे गए मेरे हजारों सवालों में से बस यही अनुत्तरित रहा है क्योंकि भाई मानते हैं कि ईश्वर के विषय में चर्चा करने की क्षमता उनमें नहीं है जब वो मिल कर स्वयं अपने बारे में बताएगा तब उसकी बात करेंगे। लेकिन मुझे लग रहा है कि मुझे मेरे सवाल का उत्तर सेमेटिक रेलिजन्स में मिल गया है। मुस्लिमों की मजहबी पुस्तक कुरान और ईसाइयों की धर्मपुस्तक बाइबिल में बताया गया है कि अल्लाह या परमेश्वर ने आदम यानि एडम(प्रथम मनुष्य) को अपने ही रूप में बनाया(फ़रिश्तों से आदेश देकर बनवाया) और स्पष्ट है कि आदम तो पुरुष हैं और उनकी एक पसली से प्रथम स्त्री हव्वा का निर्माण करा। कहा गया है अल्लाह या परमेश्वर प्रकाश(नूर) है। अब सवाल ये खड़ा हो गया है कि क्या ये एक रहस्य है या बहुत बड़ा झूठ कि एक तरफ़ उसे अपने जैसा यानि पुरुष लिखा है और दूसरी तरफ प्रकाश। यदि दुनिया बनाने वाला प्रकाश है तो उसे आदम को सूरज, जुगनू , ट्यूबलाइट या बल्ब की तरह का बनाना चाहिए था यदि हाड़मांस(लिंगधारी) बनाया तो ये नहीं बताना था कि in his own form........ अपनी ही सूरत में........। यदि आदम को लिंग है तो शतप्रतिशत ईश्वर को भी होना चाहिए अन्यथा ये बातें मात्र कल्पना हैं और वो भी पुरुषों की जिन्होंने सभ्यता के विकास क्रम में नर और मादा मानव की पसलियों में अंतर देख कर ये कहानी रच ली और खुद को ईश्वर की सूरत में जता दिया। ये विशुद्ध तर्क है मेहरबानी करके कोई इसे कुतर्क कह कर मुझे शान्त कराने का आग्रह न करे। यदि समुचित उत्तर है तो अवश्य शंका का निराकरण करे। यानि कि हमारे जैसे लोग उस परमात्मा की गलती हैं क्योंकि हमारे जैसे लोगों का तो कहीं जिक्र ही नहीं है कि उसने मुखन्नस(हिजड़े) भी बनाए हैं कभी। क्या सचमुच परमात्मा गलतियां करता है??????????

5 टिप्‍पणियां:

Kaviraaj ने कहा…

बहुत अच्छा ।

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Shastri JC Philip ने कहा…

ईश्वर की कोई गलती नहीं है. ईश्वर ने जब नर और मादा को बनाया तो बहुतों को ऐसा भी बनाया जो न नर हैं, न मादा.

लेकिन समाज में नर-मादा की बहुलता के कारण उन लोगों ने ईश्वर के ही स्वरूप में सिरजे गये तीसरे लिंग को ति्रस्कॣत कर दिया. इसमें बदलाव आना चाहिये.


सस्नेह -- शास्त्री

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
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बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना ने कहा…

कभी-कभी गर्भ में शरीर निर्माण के समय कुछ विकृतियाँ हो जाती हैं....कभी छः अंगुलियाँ तो कभी डेक्स्ट्रोकार्डिया ..तो कभी कोई अंग ही नदारद ...या फिर असामान्य निर्माण. गर्भावस्था के समय भोजन या औषधियों आदि में गड़बड़ी होने से या रेडिएशन के दुष्प्रभाव से ऐसा होना संभव है. किन्तु इन विकृतियों को लेकर कोई सामाजिक धारणा बना लेना या किसी के साथ भेदभाव करना निश्चित ही दुर्भाग्य जनक है......हर किसी को भेदभाव रहित सामान्य जीवन जीने का अधिकार है.

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना ने कहा…

कभी-कभी गर्भ में शरीर निर्माण के समय कुछ विकृतियाँ हो जाती हैं....कभी छः अंगुलियाँ तो कभी डेक्स्ट्रोकार्डिया ..तो कभी कोई अंग ही नदारद ...या फिर असामान्य निर्माण. गर्भावस्था के समय भोजन या औषधियों आदि में गड़बड़ी होने से या रेडिएशन के दुष्प्रभाव से ऐसा होना संभव है. किन्तु इन विकृतियों को लेकर कोई सामाजिक धारणा बना लेना या किसी के साथ भेदभाव करना निश्चित ही दुर्भाग्य जनक है......हर किसी को भेदभाव रहित सामान्य जीवन जीने का अधिकार है.

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कभी-कभी गर्भ में शरीर निर्माण के समय कुछ विकृतियाँ हो जाती हैं....कभी छः अंगुलियाँ तो कभी डेक्स्ट्रोकार्डिया ..तो कभी कोई अंग ही नदारद ...या फिर असामान्य निर्माण. गर्भावस्था के समय भोजन या औषधियों आदि में गड़बड़ी होने से या रेडिएशन के दुष्प्रभाव से ऐसा होना संभव है. किन्तु इन विकृतियों को लेकर कोई सामाजिक धारणा बना लेना या किसी के साथ भेदभाव करना निश्चित ही दुर्भाग्य जनक है......हर किसी को भेदभाव रहित सामान्य जीवन जीने का अधिकार है.

 

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