मंगलवार, 25 मई 2010

प्रिय मनोज तुम हिजड़ा नहीं हो,माता-पिता और डॉक्टर से सलाह लो

मुझे अक्सर पत्र आते हैं कि कुछ नौजवान दिशाभ्रम और बदलते हुए सामाजिक परिवेश की सहमति के कारण खुद को हिजड़ा मानने लगते हैं और हमारे समुदाय में शामिल होना चाहते हैं। उन सभी भाईयों को आज बहुत दिनों बाद एक साथ उत्तर दे रही हूँ।
प्रिय भाई
प्यार
एक बात बिल्कुल साफ़ जान लो कि तुम्हें लड़कियों के कपड़े पहन कर बाहर घूमने में अच्छा लगता है तो तुम हिजड़ा हो ऐसा नहीं है। हिजड़ा यानि कि लैंगिक विकलांग होना एक दुर्भाग्य है जिसमें कि स्त्री या पुरुष जननांग का कुदरती तौर पर विकास ही न हुआ हो लेकिन आप तो खुद बता रहे हैं कि आप इक्कीस साल के लड़के हैं यानि कि आप शारीरिक तौर पर सही और स्वस्थ हैं। आप मनोरोग से ग्रस्त हैं आप यदि हार्मोन उपचार लें तो आपके दिमाग में होने वाले ये बदलाव सहज ही रुक जाएंगे और आप स्वस्थ पुरुष का जीवन जी सकेंगे। स्त्रियों के कपड़े पहनने की इच्छा या गुदा मैथुन कराने की इच्छा होना ही केवल आपको हिजड़ा नहीं बना देती, आयुर्वेद में बताये गए नपुंसकता के एक प्रकारो में से ये एक है जो कि आसानी से आप इलाज करा के सही हो सकते हैं। आपको किसी हिजड़े के सहयोग की नहीं बल्कि चिकित्सक की जरूरत है। आप इस बात को दिमाग से बिलकुल निकाल दीजिये कि आप हिजड़े हैं या आप कोई मंजू हैं बस याद रखिये कि आप मनोज हैं। अपने माता-पिता, भाई बहन और दोस्तों से भी इस विषय पर चर्चा करिये। यदि आप सचमुच मुझे बड़ी बहन का दर्ज़ा दे रहे हैं तो बहन की सलाह मानिये। हिजड़ा होने की पीड़ा मैं जानती हूँ कि लैंगिक विकलांगता किस तरह एक अभिशाप जैसा लगती रही है। आपके अच्छे स्वास्थ्य और भविष्य की हम सब कामना करते हैं। आपको लिखे इस पत्र को अर्धसत्य पर प्रकाशित करने जा रही हूं लेकिन आपकी पहचान नहीं प्रकाशित करूंगी न ही आपके फोटो प्रकाशित करूंगी। अपने माता पिता से अवश्य बात करिये ये बात फिर से कह रही हूं। आप चाहें तो हमारे बड़े भाईसाहब जो कि इस पूरे परिवार के कुटुंब-प्रमुख की हैसियत से हैं आप उनसे सम्पर्क करें उनका नाम है डॉ.रूपेश श्रीवास्तव और उनका ई मेल पता है- aayushved@gmail.com
हृदय से प्रेम सहित
आपकी बड़ी बहन
मनीषा नारायण
(पोस्ट में लिखे गये नाम काल्पनिक हैं)

1 टिप्पणी:

अन्तर सोहिल ने कहा…

बहुत दिनों बाद आपने पोस्ट लिखी है जी
आपकी सलाह उन लोगों के बहुत काम आयेगी जो कुछ मनोरोग होने पर शारीरिक रूप से खुद को विकलांग समझ लेते हैं।
आपने एक युवक की जिन्दगी बरबाद होने से बचा ली है, आपसे बेहतर इस शापित जिन्दगी को कौन जान सकता है जी।
आशा है मनोज अब अपना ईलाज आदरणीय रूपेशजी या किसी योग्य चिकित्सक से करवा कर पूरी तरह ठीक हो जायेंगें।

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