रविवार, 29 मार्च 2009

हिजडा योनि में जन्म 001

(सारथी पर हाल ही में छपा शास्त्री जी का लेख)  मेरे पाठकों में से अधिकतर या तो पुरुष हैं या स्त्री. इन में से अधिकतर को लिंगाधारित विषमता का सामना करना नहीं पढता है. पुरुष को पुरुष होने के कारण या स्त्री को स्त्री होने मात्र के कारण समाज में मजाक का पात्र नहीं बनना पडता है.  लेकिन समाज का एक तबका ऐसा भी है जिसको हर ओर से उपेक्षा, तिरस्कार, निंदा आदि सहन करना पडता  है महज इस कारण कि वे न तो पुरुष हैं न स्त्री.

यह एक जनितक (Genetic) समस्या है जो भारत के उत्तरी प्रदेशों में अधिक दिखती है. जब शुक्राणु का संयोजन होता है उसी क्षण यह तय हो जाता है कि बच्चा नर होगा या मादा. लेकिन इसके बाद काफी जटिल प्रक्रियायों द्वारा उनके लैंगिक अवयवों का निर्माण होता है. न केवल बाह्य अवयव, बल्कि उनसे जुडे आंतरिक अवयवों की भी रचना होती है.

इस जटिल प्रक्रिया को उस भूण के जीन नियंत्रित करते हैं. लेकिन प्रक्रिया अपने आप में इस कदर जटिल है, एवं इतने समय तक चलती रहती है कि उसमें यदा कदा अडचन आ जाती है और अंत में बालक या बालिका के लक्षण स्पष्ट होने के बदले मिलेजुले लक्षणों/अवयवों के साथ जन्म होता है. और इसके साथ जन्म लेती है एक ऐसी विषमता जो आजीवन उस नवजात शिशु को नहीं छोडती.

हिन्दुस्तान के अधिकांश इलाकों में इस तरह के शिशु के (जिस के जननांग स्पष्टतया बालक या बालिका के नहीं होते)  जन्मते ही उसे उसका परिवार त्याग देता है. ऐसे शिशुओं को सामान्यतया हिजडा कहा जाता है, एवं उसकी आगे की विधि यह होती है कि उसे अन्य हिजडे पालें. होता भी ऐसा ही है कि अपवादों को छोड कर  ऐसे शिशुओं को हिजडे लोग ही ले जाकर पालते हैं.

आगे बढने के पहले मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि चूंकि एक व्यक्ति लिंगनिर्धारण के समय होने वाले जनितक समस्या के कारण हिजडा बन जाता है, अत: यह एक प्रकार की शारीरिक विकलांगता है. जैसे एक बच्चा अंधा, बहरा, या लंगडा पैदा होता है वैसे ही एक लैंगिक विकलांगता के कारण बच्चा इस तरह पैदा होता है. इस कारण हिजडा कहने के बदले इनको “लैंगिक विकलांग” कहना सही होगा, और मैं इसी नामकरण का उपयोग करता हूँ.  लेकिन इस आलेख में मैं हिजडा और लैंगिक विकलांग दोनों शब्दों का प्रयोग करूंगा. [क्रमश:]

(मूल लेख सारथी चिट्ठे पर शास्त्री जी के द्वारा लिखा गया था. उनकी विशेष व्यक्तिगत अनुमति के कारण इस लेखन परंपरा को  अर्धसत्य पर पुन: प्रकाशित किया जा रहा है.)

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