रविवार, 24 अगस्त 2008

रफ़्तार डॉट काम के ब्लाग रिव्यू में अर्धसत्य : पूजा बहन को धन्यवाद

सार्थक चीख
समाज में तिरछी नजरों से देखे जाने वाले एक वर्ग के व्यक्ति ने ब्लॉगजगत में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। ब्लॉग 'लैंगिक विकलांग' द्वारा बनाया गया है। ब्लॉगर अपने अनुभवों पर यहां बात करती हैं। आधासच डॉट ब्लॉगस्पॉट नाम से बनाया गया यह ब्लॉग समाज में होते परिवर्तन को रेखांकित करता है। परिवर्तन, जो वक्त के साथ आता ही है। ब्लॉग का टाइटल कहता हैः हम अधूरे इंसान अगर सच भी बोलें तो लोग कहते हैं उसे अर्धसत्य। ब्लॉग इसी साल बनाया गया है और आमतौर पर नियमित अपडेट होता है।
यह रिव्यू पूजा बहन ने लिख कर यह जाहिर करा है कि लोग अर्धसत्य की तरफ ध्यान दे रहे हैं, मैं अपनी उस उपस्थिति को आज के समाज में दर्ज करा पा रही हूं जिसे लगभग तीस साल पहले नकार दिया गया था और मेरे माता-पिता को मेरा जन्म प्रमाणपत्र यह कह कर नहीं दिया गया था कि न तो यह लड़का है न ही लड़की तो सर्टिफ़िकेट पर क्या लिखें? मेरे माता पिता ने मुझे बड़ी ही उहापोह में लड़का(क्योंकि लड़का नहीं था) मान कर पाला लेकिन ग्रेजुएशन तक आते-आते तो मुझे हर कदम पर चुभो-चुभो कर यह एहसास दिलाया गया कि मैं मानवों की सामजिक मुख्यधारा में स्वीकार्य नहीं हूं। तब मुझे सहारा दिया मेरी लैंगिक विकलांग गुरू "शीला अम्मा" ने जो खुद भी अपने समय में य तिरस्कार की पीड़ा भुगत चुकी होंगी। अब मैं अपने प्रेरणास्रोत व मार्गदर्शक से मिल चुकी हूं जो कि सही अर्थों में गुरुदेव कहलाने के अधिकारी हैं, जिन्होंने मुझे अच्छी हिंदी सिखाई, कम्प्यूटर सिखाया, ब्लागिंग सिखाया और यह बताया कि मैं ईश्वर की गलती नहीं बल्कि उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना हूं जिसमे कि स्त्री और पुरुष दोनो के गुण हैं और अवगुण किसी के भी नहीं; जीवन को नया अर्थ मिल गया है। अब भगवान से प्रार्थना है कि मेरे भाई डा.रूपेश श्रीवास्तव का कद इतना बड़ा हो जाए कि हर लैंगिक विकलांग को इनका साया नसीब हो सके। एक बात और लिखना है कि अब तक जो शब्द मेरे जैसे लोगों के लिये प्रयोग करे जाते थे उनसे भाईसाहब असहमत थे जैसे कि हिजड़ा या किन्नर, तो उन्होंने एक सर्वथा नए सार्थक शब्द की रचना करी "लैंगिक विकलांग",जोकि अब प्रयोग में आने लगा है और आशा है कि आने वाले समय में हिंदी के शब्दकोश भी इस शब्द को स्वीकार लेंगे।

4 टिप्‍पणियां:

धीरज राय ने कहा…

kisi ke kahne se kya fark padta hai.unke kahne se khbrane ki jarurat nahi hai

दीपक बरनवाल ने कहा…

sach jo kuchh hai aur jaisa bhee hai sach hamesha sach hota hai. sach ek chauthai ya aadha nahi sach apne aap men purna hai.

Samaj se tyage aur triskrit logo ko samaj hi jeene ke liye paisa bhee diya hai lekin samman kabhee nahi diya. jiska har kisi ko chahiye.

Dhanyabad ke patr hai wo log aur manisha didi aap bhee, naye pahal ke shuruaat ke liye.
Door talak jana hai talash manjeel ke liye nahi, manjeel tak pahuchane ke liye. samaj men lengik viklangta se pidit logon ko samman dilane ke liye

Unknown ने कहा…

रूपेश भाई, मैं काफी समय से परासिन नहीं गया. वैसे मुझे मालूम है कि वहां अभी तक कुआं नहीं बना है. अगर विवेक सिंह दोबारा मंत्री बने तो उनसे कहकर मैं ही कोशिश करूंगा कि सरकार परासिन में कुआं बनवाएं. विवेक मेरी बात टाल नहीं पाएंगे. वह मेरे पुराने मित्रों में हैं. मंत्री बनने के बाद भी शाम को दो-दो पैग लगाने के लिए दिल्ली आने पर तलाशते रहते थे. वैसे आपका लेखन काफी अच्छा है. हम तो कभी कभार ही लिखते हैं. आप कहां से ताल्लुक रखते हैं. मौका मिले तो बताइगा.
मुकुंद, चंडीगढ़. 09914401230

Unknown ने कहा…

रूपेश भाई, आपने फिर पढ़ा. शुक्रिया. मैंने आज आपका अर्धसत्य देखा. अच्छा लगा.
मुकुंद

 

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