बुधवार, 3 सितंबर 2008

एक मैं और एक तू.....





एक विचार जो कि भीतर तक झिंझोड़ता रहता है कि सुंदरता क्या होती है और वो भी स्त्रैण सुंदरता। मैं जो दो चित्र प्रेषित कर रही हूं उन्हें जरा गौर से देखिये आपको अंतर स्पष्ट समझ में आ जाएगा कि एक व्यक्तित्त्व लाचारी, गरीबी, मजबूरी, जबरन मुस्कराने के प्रयास से भरा है और वहीं दूसरी ओर है अमीरी, आनंद, मुक्त हास्य, कुंठामुक्त। क्यों????? बस आधार है खूबसूरती , जबकि दोनो ही लैंगिक विकलांग हैं। एक गुमनाम है और दूसरा नामचीन "लक्ष्मी" जिन्हें आप सलमान खान के कार्यक्रम दस का दम से लेकर डिस्कवरी व नेशनल ज्योग्राफ़िक चैनल तक के कार्यक्रमों में देख चुके हैं। यह सब देख कर लगता है कि नाखूनों से अपने ऊपर की त्वचा और मांसपेशियों को खुरच-खुरच कर उधेड़ दूं ताकि मन इस असुंदरता की कुंठा से मुक्त हो जाए।

1 टिप्पणी:

सुशील छौक्कर ने कहा…

आज पहली बार आया आपके ब्लोग पर। आपने अच्छा किया एक ब्लोग पर अपने अनुभव, जज्बात, विचार रखकर। मैं काफी दिनों से एक पोस्टृ लिखने चाह रहा था पर वह पुरी नही हो पा रही थी आज लगभग पूरी हुई तो एक पत्रकार साथी ने आपके ब्लोग का लिकं भेजा जब मैंने उन्हें वो रचना पढने को भेजी कि ये लिखा है पोस्ट करु या ना करूं, सही लिखा है या नहीं। किसी की भावनाओ को तो ठेस नही पहुँची हैं या फिर कुछ और जोड़ा जा सकता इसमें कुछ। तब लगभग इस ब्लोग की सारी पोस्ट पढ गया। और मैं आपसे कहूँगा कि आप ओर भी लिखे और निरंतर लिखे। हमारी शुभकामनाएं आपके साथ है। मैं चाहूँगा कि कल मेरे ब्लोग पर ये पोस्ट पढे।

 

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आयुषवेद by डॉ.रूपेश श्रीवास्तव