मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010
किन्नर,किन्नर,किन्नर....अरे हम किन्नर नहीं लैंगिक विकलाँग हैं जिन्हें तुम हिजड़ा कहते हो
किन्नर शब्द और लोगों के बारे में विस्तार से जानने के लिये इस लिंक पर पधारें
किन्नर नहीं हैं हमलोग
रविवार, 19 सितंबर 2010
शनिवार, 28 अगस्त 2010
सामाजिक बदलाव की हवा चली पाकिस्तान में
ये एक शुभ संकेत है कि हमारे पड़ोसी देश में ऐसा कानूनी प्रक्रिया के द्वारा हो रहा है। जैसा कि बाबू जी शास्त्री जे.सी.फिलिप कहते हैं कि सामाजिक बदलावों की गति बहुत धीमी होती है तो ये भी हो सकता है कि ये इसी बदलाव के तहत हो।
मंगलवार, 25 मई 2010
प्रिय मनोज तुम हिजड़ा नहीं हो,माता-पिता और डॉक्टर से सलाह लो
प्रिय भाई
प्यार
एक बात बिल्कुल साफ़ जान लो कि तुम्हें लड़कियों के कपड़े पहन कर बाहर घूमने में अच्छा लगता है तो तुम हिजड़ा हो ऐसा नहीं है। हिजड़ा यानि कि लैंगिक विकलांग होना एक दुर्भाग्य है जिसमें कि स्त्री या पुरुष जननांग का कुदरती तौर पर विकास ही न हुआ हो लेकिन आप तो खुद बता रहे हैं कि आप इक्कीस साल के लड़के हैं यानि कि आप शारीरिक तौर पर सही और स्वस्थ हैं। आप मनोरोग से ग्रस्त हैं आप यदि हार्मोन उपचार लें तो आपके दिमाग में होने वाले ये बदलाव सहज ही रुक जाएंगे और आप स्वस्थ पुरुष का जीवन जी सकेंगे। स्त्रियों के कपड़े पहनने की इच्छा या गुदा मैथुन कराने की इच्छा होना ही केवल आपको हिजड़ा नहीं बना देती, आयुर्वेद में बताये गए नपुंसकता के एक प्रकारो में से ये एक है जो कि आसानी से आप इलाज करा के सही हो सकते हैं। आपको किसी हिजड़े के सहयोग की नहीं बल्कि चिकित्सक की जरूरत है। आप इस बात को दिमाग से बिलकुल निकाल दीजिये कि आप हिजड़े हैं या आप कोई मंजू हैं बस याद रखिये कि आप मनोज हैं। अपने माता-पिता, भाई बहन और दोस्तों से भी इस विषय पर चर्चा करिये। यदि आप सचमुच मुझे बड़ी बहन का दर्ज़ा दे रहे हैं तो बहन की सलाह मानिये। हिजड़ा होने की पीड़ा मैं जानती हूँ कि लैंगिक विकलांगता किस तरह एक अभिशाप जैसा लगती रही है। आपके अच्छे स्वास्थ्य और भविष्य की हम सब कामना करते हैं। आपको लिखे इस पत्र को अर्धसत्य पर प्रकाशित करने जा रही हूं लेकिन आपकी पहचान नहीं प्रकाशित करूंगी न ही आपके फोटो प्रकाशित करूंगी। अपने माता पिता से अवश्य बात करिये ये बात फिर से कह रही हूं। आप चाहें तो हमारे बड़े भाईसाहब जो कि इस पूरे परिवार के कुटुंब-प्रमुख की हैसियत से हैं आप उनसे सम्पर्क करें उनका नाम है डॉ.रूपेश श्रीवास्तव और उनका ई मेल पता है- aayushved@gmail.com
हृदय से प्रेम सहित
आपकी बड़ी बहन
मनीषा नारायण
(पोस्ट में लिखे गये नाम काल्पनिक हैं)
गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010
लैंगिक विकलांगों को सेक्स का खिलौना बनाने के बौद्धिक प्रयास
हमारे देश में समलैंगिकता को जब से उच्च न्यायालय ने अपराधबोध से मुक्त क्या कराया(भले ही उच्चतम न्यायालय में अभी भी इसके विरुद्ध अपील करी गयी है) उनकी चांदी हो गयी जो कि लैंगिक विकलांगो को सेक्स के खिलौने मानते हैं। मुंबई में लैंगिक विकलांगों के हितों के नाम पर काम करने वाले हम जैसे ही एक बंदे लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने काफ़ी नाम कमाया है। अस्तित्त्व नाम से एक गैर सरकारी संगठन भी चला रखा है। विदेश यात्राओं से लेकर टीवी कार्यक्रमों में दिखना इनका शगल है। जिस तरह हर समुदाय में होता है कि उनके ही स्वयंभू नेता उन्हीं का दोहन और शोषण करते हैं हमारे समुदाय में भी हो रहा है। शबनम मौसी नाम सब जानते हैं उन्होंने लैंगिक विकलांगता को राजनैतिक ताकत हासिल करने के लिये इस्तेमाल करा और लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी प्रसिद्धि और पैसा कमाने के लिये इस्तेमाल कर रहे हैं।
अभी हाल ही में मुंबई में एक सौन्दर्य प्रतियोगिता का आयोजन करा गया जिसमें कि तमाम जगहों से लैंगिक विकलांगों को बुलाया गया और लाखों रुपये का खर्च कार्यक्रम के आयोजन में दर्शाया गया। जीनत अमान और सेलिना जेटली जैसे भ्रष्टबुद्धि फिल्म अभिनेत्रियो का भी इस कार्यक्रम में सहयोग रहा। इन लोगों ने बड़े बड़े व्याख्यान दे डाले कैमरे के सामने कि जैसे ये कोई क्रान्तिकारी पहल कर चुके हों।
इन सभी से सवाल कि क्या समाज की मुख्यधारा से लैंगिक विकलांगों को जोड़ने का एक यही रास्ता है? सौन्दर्य स्पर्धाओं के बाद ये कहाँ खो जाते हैं सेलिना जेटली की तरह माडलिंग या फिल्मों में आकर सम्मानपूर्वक जीवन क्यों नहीं जी पाते? क्यों नहीं लैंगिक विकलांग बच्चों के लिये आजतक लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी या शबनम मौसी ने स्कूल की मांग करी या खुद ही खोल दिया? क्यों नहीं ये आगे आकर CRY जैसी संस्थाओं का सहयोग लेकर बच्चों को पढ़ाती लिखाती हैं? क्यों नहीं इन आयोजकों ने मुंबई में ट्रेन में भीख मांगने या कमाठीपुरा में सेक्स के भूखे दरिंदों की भूख मिटा कर अपने पेट की भूख मिटा कर दर्दनाक जीवन जीने वाले मासूम लैंगिक विकलांगों को इस आयोजन की सूचना तक न दी?(ये कहेंगे कि हमने तो अखबारों में सूचना दी थी तो जरा ये कुटिल बताएं कि कितने हिजड़े अखबार पढ़्ने के लायक बनाए आजतक इन लोगों ने???)।
आखिरी सवाल कि इन आयोजकों ने कैसे निर्धारित करा कि सारे प्रतिभागी लैंगिक विकलांग(हिजड़े) ही हैं, क्या कोई डॉक्टरी सर्टिफ़िकेट था? यदि नहीं तो लाली पाउडर लगा कर तो शाहरुख खान से लेकर आमिर खान तक सभी भाग ले सकते थे। कोई उत्तर नहीं है किसी के पास ......... इस दिशा में कोई प्रयास न करा जाएगा कि लैंगिक विकलांगता के चिकित्सकीय पैमाने निर्धारित हों और इस आधार पर उन्हें शिक्षा से लेकर नौकरियों में वरीयता दी जाए, आरक्षण दिया जाए। ऐसे तो अंधे भी सुंदर होते हैं तो क्या उनके अंधेपन को लेकर उन्हें अलग सा जीव मान लिया जाए और उनकी सौन्दर्य स्पर्धाएं कराई जाएं? क्यों ये विचार इन मासूमों के दिमाग में ठूँसा जा रहा है कि ये सौन्दर्य प्रतियोगिता में ही अपना टैलेंट दिखा सकते हैं ? कभी इनकी कुश्ती या दौड़ की प्रतियोगिता रखकर देखा जाए, बस इतना बताना है कि हम जैसे मनुष्य जैसे दिखने वाले प्राणी सचमुच मनुष्य ही हैं तुम्हारे ही पेट से पैदा हुए, हमें एलियन या दूसरे ग्रह से आया न समझो।
सोमवार, 22 फ़रवरी 2010
जिस बात से भय लग रहा था
जिस बात से भय लग रहा था कि कहीं हम जैसे लैंगिक विकलांगों के समाज में स्वीकारे जाने पर हमारी पहचान न विकृत हो जाए। आजकल जिस तरह से लैंगिक विकलांगता को एक तीसरा लिंग जताया जा रहा है ये सबसे खतरनाक साजिश है कुछ कुटिल दिमागों की जो कि अपनी विकृत और बीमार मानसिकता को इस तरह से सामने लाकर भोले बन रहे हैं। मुंबई में होने वाली इस तरह की सौंदर्य प्रतियोगिताएं क्या भला कर पा रही हैं ये सवाल कोई नहीं उठाने का साहस करता। स्त्री एवं पुरुष समलैंगिक संबंधों को अपनी सैक्स प्रायोरिटी(काम वरीयता) बता कर रुग्ण कामुकता के लोग अपने लिये समाज में सहानुभूति पैदा कर रहे हैं और साथ में एक जो धूर्तता कर रहे हैं वह है हम जैसे लैंगिक विकलांगों को कुछ पैसों का लालच दिखा कर अपने कार्यक्रमों में शामिल करना। मैं इस तरह के आयोजनों का पूरी ताकत से विरोध करती हूँ, थू है उन आयोजकों पर जो कि अपने लाभ के लिये बेचारे कम पढ़े-लिखे और अपना भला बुरा न समझ पाने वाले लैंगिक विकलांग बच्चों को इस्तेमाल कर रहे हैं। ये प्रतियोगिताएं मात्र वैसी ही हैं जैसे कि अंधों या लंगड़ों के लिये अलग से सौन्दर्य प्रतियोगिता कराई जाए। मूल मुद्दा शिक्षित करके समाज की मुख्यधारा से जोड़ना है ताकि देहव्यवसाय(गुदामैथुन के द्वारा) या मजबूरी में नाच गाकर पेट पालने की पीड़ा को समाप्त करा जा सके।