आदरणीय सुनील दीपक जी के कमेंट्स को देखकर लगने लगा है कि मैं देश की मानवों द्वारा बनाई सीमाओं से पार निकल आई हूं और अब मानवता की सीमा के भीतर मेरे दर्द को देखने वाले लोग आगे आ रहे हैं । मेरे गुरुदेव और मार्गदर्शक पूज्यनीय डा.रूपेश श्रीवास्तव जी की ये पंक्तियां आपको अजीब लगीं "अंधा,बहरा या मनोरोगी तो नहीं था मैं" , दरअसल जिस सच की यह अभिव्यक्ति है वह काव्यात्मक होने या तुकान्त होने के कारण आपको कविता प्रतीत हुई लेकिन यही सत्य है कि मैंने एक लैंगिक विकलांग होकर भी इन सबसे खुद को अधिक सक्षम किन्तु अधिक शोषित पाया है हमें जीवन यापन के लिये भीख मांगनी पड़ती है ,गंदा काम करना पड़ता है क्योंकि लोग हमें नौकरी देने में हिचकिचाते हैं जबकि विकलांगों का तो नौकरियों में आरक्षित कोटा है ,हां मनोरोगी बच्चों के ऊपर यह बात लागू नहीं होती दुर्भाग्य से ;हम कुछ लोग मिल कर डा.साहब के मार्गदर्शन में भविष्य में ऐसे बच्चों के लिये बड़ा सा घर बनाने की योजना रखते हैं जिसमें हम सब मिल कर मां होने का एहसास कर पाएंगे और बच्चों को भी कुछ बेहतर दे सकेंगे । किन्तु यदि आपकी कोमल भावनाओं को इन पंक्तियों से ठेस पहुंची है तो मैं हम सब की तरफ से क्षमाप्रार्थी हूं । ऐसे ही प्रेम और अनुराग बनाए रखिए इससे हमें बल मिलता है और साथ ही आपका सहृदय मार्गदर्शन भी अपेक्षित है ।Sunil Deepak ने कहा…
कविता सुंदर है और हिंजड़ा होने की मानसिक व्यथा को अच्छी तरह व्यक्त करती है. लेकिन इन पंक्तियों को देख कर थोड़ा अजीब लगाः "अंधा,बहरा या मनोरोगी तो नहीं था मैं"अंधा हो या बहरा या मनोरोगी या कुष्ठरोगी या लैंगिक विकलाँग, सभी को समाज हाशिये से बाहर करता है, सभि का शोषण करता है, सभी के साथ अन्याय होता है. हमारे आसपास खड़ी यह दीवारें मिल कर ही टूट सकती हैं, अगर हम लोग आपस में ही एक दूसरे को नीचा ऊँचा देखेंगे तो बँटे रहेंगे, कमज़ोर रहेगें, और दीवारें न तोड़ पायेंगे.सुनील
March 14, 2008 1:35 PM
आपकी टिप्पणी और मेरे उत्तर को एक पोस्ट के रूप में डाल रही हूं विश्वास है कि आप अन्यथा न लेंगे ।
नमस्ते
शुक्रवार, 14 मार्च 2008
हिंजड़ा होने की मानसिक व्यथा की अभिव्यक्ति पर प्रश्नचिह्न
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गंदा काम,
डा.रूपेश श्रीवास्तव,
भीख,
लैंगिक विकलांग,
हिंजड़ा
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1 टिप्पणी:
आप ने मेरी टिप्पणी को इतनी गम्भीरता से ले कर उसका उत्तर दिया है, मुझे बहुत अच्छा लगा. हमेशा एक दूसरे को अपनी बात समझाना आसान नहीं होता और टिप्पणी की दो पक्तियों में सबकुछ कहना भी कठिन, पर आप के चिट्ठे के बहाने आप से मुलाकात हुई यह खुशी की बात है.
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