पिछले किसी जन्म के सत्कर्म के फलस्वरूप इस जन्म में मेरे तारणहार मेरे गुरुदेव डा.रूपेश मुझे मिल गये। जो विद्या का प्रकाश उन्होंने मेरे भीतर जगाया है वो फैले उसी में उसकी सार्थकता है। पहले मैंने कम्प्यूटर सीखा, हिन्दी सीखी, ब्लागिंग सीखी और जीवन जीना सीखा। अब मैं खुद सक्षम हो गयी हूं कि किसी नये मित्र को सिखा सकूं। इसी ज्योत से ज्योत जलाने के मिशन में मैंने अपनी बड़ी गुरुबहन(लैंगिक विकलांग समुदाय में) रम्भा अक्का को भी कम्प्यूटर की शुरूआती जानकारियां देना शुरू करा था और अब वे स्वयं लिखने पढ़ने लगी हैं। मेरे पास इस खुशी को बताने के लिये शब्द नहीं है। ईश्वर हमारे इसे मिशन को कामयाब करे इसके लिये आप सबकी शुभेच्छाओं की आवश्यकता है, स्नेह बनाए रखें।
मंगलवार, 18 नवंबर 2008
ज्योत से ज्योत जलाते चलो......
पिछले किसी जन्म के सत्कर्म के फलस्वरूप इस जन्म में मेरे तारणहार मेरे गुरुदेव डा.रूपेश मुझे मिल गये। जो विद्या का प्रकाश उन्होंने मेरे भीतर जगाया है वो फैले उसी में उसकी सार्थकता है। पहले मैंने कम्प्यूटर सीखा, हिन्दी सीखी, ब्लागिंग सीखी और जीवन जीना सीखा। अब मैं खुद सक्षम हो गयी हूं कि किसी नये मित्र को सिखा सकूं। इसी ज्योत से ज्योत जलाने के मिशन में मैंने अपनी बड़ी गुरुबहन(लैंगिक विकलांग समुदाय में) रम्भा अक्का को भी कम्प्यूटर की शुरूआती जानकारियां देना शुरू करा था और अब वे स्वयं लिखने पढ़ने लगी हैं। मेरे पास इस खुशी को बताने के लिये शब्द नहीं है। ईश्वर हमारे इसे मिशन को कामयाब करे इसके लिये आप सबकी शुभेच्छाओं की आवश्यकता है, स्नेह बनाए रखें।
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3 टिप्पणियां:
ज्योत से ज्योत जलाने का आपका प्रयास सफलता के उतचम शिखर पर पहुँचे. हमारी शुभकामनाएँ.
बहुत खूब मनीषा, बहुत खूब !!
साक्षरता एवं अन्य बहुत सारी चीजें लोगों के मन एवं जीवन में ज्योति जगा सकती है.
मुझे बहुत खुशी है कि तुम को रोशनी दिखाने के लिए कोई मिला तो तुम ने उस ज्योति को अपने पास कैद रखने के बदले अगले व्यक्ति को देना शुरू किया.
मेरे कहने से यह लक्ष्य बना लो कि तुम अगले 2 सालों में (सन 2010 की समाप्ति से पहले) कम से कम 10 अपनी दस बहिनों को साक्षर बनाओगी एवं कंप्यूटर एवं इंटरनेट सिखाओगी.
इतना ही नहीं, उन में से हरेक से वादा करवा लेना कि वे हर साल कम से कम 10 लोगों तक यह ज्योति पहुंचा देंगे एवं उनको प्रेरित करेंगे कि वे इस ज्योति को अखंड रखें.
ऐसा हो जाये तो इसका फल देखने के लिये मैं शायद न बचूं, लेकिन सन 2030 पहुंचते पहुंते एक क्रांति आ जायगी.
तय्यार हो क्या इस चुनौती को स्वीकार करने के लिये?
सस्नेह -- शास्त्री
गुरूवर्यसम शास्त्री जी,जीवन का क्या भरोसा कौन कब न रहे....मैं, आप और खुद मनीषा दीदी ही... किन्तु जो ऊर्जा आपके स्नेह ने जगाई है वह सतत बनी रहेगी। इसी विश्वास को लेकर हम सब पुरजोर चल रहे हैं और गुरुशक्तियों का हाथ तो हमेशा सिर पर है ही। आपकी करुणा बल प्रदान करती है।
चरण स्पर्श
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