लैंगिक विकलांग या हिजडे हर समाज में होते हैं. कम से कम 3 से 4 हजार पुराने एतिहासिक पुस्तकों में इनका वर्णन आता है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है प्राचीन ईजिप्ट के पुस्तकों में.
मनुष्य समाज में हमेशा पुरुष एवं स्त्रियों की अधिकता रही है. शायद द्स लाख में एक होगा जो लैंगिक विकलांग पैदा होता है. लेकिन जिस तरह से कोई भी नवजात शिशु अपनी इच्छा से शारीरिक या मानसिक विकलांगता लेकर नहीं पैदा होता है उसी प्रकार कोई भी लैंगिक विकलांग अपनी मर्जी से यह विकलांगता लेकर नहीं पैदा होता है.
इस कारण हिजडों को असामान्य, अपराधी, या विचित्र समझने के बदले उनको भी मानव समझना जरूरी है. बाकी अगले पोस्ट में…
3 टिप्पणियां:
प्रिय! आप जब मित्र हैं तो अनाथ लिखना बंद करें हम सब एक दूसरे को सहकार्य कर सकते हैं हम अनाथ नहीं बल्कि दूसरों को सहारा देने का बूता पैदा करें लेकिन अगर आप इस प्रत्यय को अपनी पहचान से जोड़े रखनें में सार्थकता समझें तो यही सही....... जिस बेनामी टिप्पणीकार ने टिप्पणी करी है ऐसे लोगों को सहयोग के लिये जोड़ना होगा, प्रेम सहित
मुनव्वर आपा
मुनव्वर जी, आपके सुझाव के लिये आभार. मैं ने अपना तूलिका-नाम अनाथ-मित्र से बदल कर समाज-मित्र कर लिया है.
वाह भई वाह मुनव्वर एवं समाजमित्र, कहां तो लोग शिकायत कर रहे हैं कि प्रतिक्रिया नहीं हो रही, कहां आप जैसे लोग बहुत सकारात्मक प्रतिक्रियायें कर रहे है.
लगे रहें, असर जरूर होगा !!!
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