मैंने अपने मामाजी(डा.रूपेश श्रीवास्तव) के पास कुछ समाचार पत्रों की कटिंग्स और कुछ वीडियो क्लिपिंग्स देखी जिनके केंद्र में एक ही समाचार पर जोर था कि कुछ अपराधी किस्म के लोग अच्छे-भले पुरुषों का लिंग काट कर हिजड़ा बना कर अपनी टोली में शामिल कर लेते हैं।
अब मेरी बात को गौर से समझिये कि नुकसान पहुंचाने वाले से बदला लेना एक सहज सी इंसानी फितरत है, क्या आज तक आपने कोई समाचार देखा या पढ़ा कि किन्ही हिजड़ों ने जिस पुरुष का लिंग काटा था उसने बदला लेने की नियत से उन हिजड़ों में शामिल होकर उन हिजड़ों की हत्या कर दी हो या मारा-पीटा तक हो। क्यों????? क्या आपका लिंग मैं काट दूं तो आप मुझे जीवित छोड़ेंगे? आपका परिवार मुझे छोड़ देगा? क्या कानून मुझे माफ़ कर देगा? यदि मैं किसी द्स-बारह साल के लड़के का लिंग काट देती हूं तो क्या लिंग कटते ही उसकी याददाश्त भी गुम हो जाती है कि वह अपने माता-पिता के प्यार को भूल जाता है और उनके पास नहीं जाता बल्कि जिसने उसका लिंग काटा है उन्हीं लोगों के साथ उनके समुदाय में बड़े प्रेम से रहने लगता है और जिंदगी भर रहता है? अगर हिजड़े इतने बड़े सर्जन होते हैं जैसा कि उपन्यासकार जान इरविंग के १९९४ में प्रकाशित उपन्यास में उन्होंने लिखा है तो क्यों नहीं हिजड़े पुरुषों का लिंग काटने का झंझट करते हैं बल्कि लड़कियों की योनि की सिलाई कर दें बस मूत्रमार्ग भर छो़ड़ दें तो अधिक अच्छा विकल्प होगा, आपका क्या विचार है इस सुझाव पर? मैं ऐसे हजारों सवाल खड़े कर सकती हूं क्योंकि मैं इस बात के सत्य को जानती हूं और अब मेरी ज़हालत डा.रूपेश श्रीवास्तव द्वारा दी जा रही शिक्षा के प्रकाश से समाप्त हो रही है। सच ये भी है कि लैंगिक लक्षणों की अस्पष्टता को आधार बना कर एक समाज खुद को हजारों पीढ़ियों से जिंदा रखे है और कुछ क्रूर किस्म के खूंख्वार सफेदपोश लोग हमारे जैसे अभागे लैंगिक विकलांगों को "थर्ड सेक्स" की मान्यता दिलाने की वकालत कर रहे हैं ताकि उनकी हैवानियत भरी कुंठित यौन वरीयताएं (sexual preferences) कानूनी जामा पहना कर एक तरफ सुरक्षित रख दी जाएं। हमारे जैसे अभागे बच्चों को पहले तो पहले तो अपनी गलीज़ यौन कुंठा के लिये ऐसे लोग इस्तेमाल करते रहे और अब हमें बनाया जा रहा है "एड्स लाबी" के प्रचार का सामान। कोई तो इसे रोको..............
अब मेरी बात को गौर से समझिये कि नुकसान पहुंचाने वाले से बदला लेना एक सहज सी इंसानी फितरत है, क्या आज तक आपने कोई समाचार देखा या पढ़ा कि किन्ही हिजड़ों ने जिस पुरुष का लिंग काटा था उसने बदला लेने की नियत से उन हिजड़ों में शामिल होकर उन हिजड़ों की हत्या कर दी हो या मारा-पीटा तक हो। क्यों????? क्या आपका लिंग मैं काट दूं तो आप मुझे जीवित छोड़ेंगे? आपका परिवार मुझे छोड़ देगा? क्या कानून मुझे माफ़ कर देगा? यदि मैं किसी द्स-बारह साल के लड़के का लिंग काट देती हूं तो क्या लिंग कटते ही उसकी याददाश्त भी गुम हो जाती है कि वह अपने माता-पिता के प्यार को भूल जाता है और उनके पास नहीं जाता बल्कि जिसने उसका लिंग काटा है उन्हीं लोगों के साथ उनके समुदाय में बड़े प्रेम से रहने लगता है और जिंदगी भर रहता है? अगर हिजड़े इतने बड़े सर्जन होते हैं जैसा कि उपन्यासकार जान इरविंग के १९९४ में प्रकाशित उपन्यास में उन्होंने लिखा है तो क्यों नहीं हिजड़े पुरुषों का लिंग काटने का झंझट करते हैं बल्कि लड़कियों की योनि की सिलाई कर दें बस मूत्रमार्ग भर छो़ड़ दें तो अधिक अच्छा विकल्प होगा, आपका क्या विचार है इस सुझाव पर? मैं ऐसे हजारों सवाल खड़े कर सकती हूं क्योंकि मैं इस बात के सत्य को जानती हूं और अब मेरी ज़हालत डा.रूपेश श्रीवास्तव द्वारा दी जा रही शिक्षा के प्रकाश से समाप्त हो रही है। सच ये भी है कि लैंगिक लक्षणों की अस्पष्टता को आधार बना कर एक समाज खुद को हजारों पीढ़ियों से जिंदा रखे है और कुछ क्रूर किस्म के खूंख्वार सफेदपोश लोग हमारे जैसे अभागे लैंगिक विकलांगों को "थर्ड सेक्स" की मान्यता दिलाने की वकालत कर रहे हैं ताकि उनकी हैवानियत भरी कुंठित यौन वरीयताएं (sexual preferences) कानूनी जामा पहना कर एक तरफ सुरक्षित रख दी जाएं। हमारे जैसे अभागे बच्चों को पहले तो पहले तो अपनी गलीज़ यौन कुंठा के लिये ऐसे लोग इस्तेमाल करते रहे और अब हमें बनाया जा रहा है "एड्स लाबी" के प्रचार का सामान। कोई तो इसे रोको..............
4 टिप्पणियां:
भूमिका,
आपने बड़ी तर्कसंगत बातें की हैं, लोगों कि आम धरना जो सिर्फ़ कही सुनी बातों पर आधारित होती है को हम तब तक नही बदल सकते जब तक हमारे आप जैसी तमाम बहने मुख्यधारा में ना आ जाईं क्यूंकि तब तक सिर्फ़ हवा कि बातें ही होती रहेंगी. आप और आपके जैसे तमाम हमारे बच्चे जो ईश्वरीय कृति कि कमी का शिकार हैं को समाज के कुछ कथित मठाधीशनुमा ठेकेदारों से बचाकर समाजिक बराबरी और हिस्सेदारी ही इन लैंगिक विकलांग बिरादरी को बराबरी में ला सकती है. और इस मुहीम में डॉक्टर रुपेश का साथ देने में हाथ आगे आयेंगे इसका पुरा यकीन है.
लिखते रहें, क्योकि इस विषय पर बहुत अधिक अज्ञान है.
-- शास्त्री
-- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.
महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)
लिखते रहें, क्योकि इस विषय पर बहुत अधिक अज्ञान है.
-- शास्त्री
-- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.
महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)
आपका यह चिट्ठा आज ही पढ़ सका।
क्षमा करें, आप लोगों के बारे में बहुत कम जानता हूँ पर अब ज्यदा जानने की इच्छा हो रही है।
लिखते रहिए।
शुभकामनाएं
एक टिप्पणी भेजें