सामान्यतया लोग सिर्फ पुल्लिंग एवं स्त्रीलिंग के बारे में जानते है, लेकिन कुछ भाषाओं में नपुंसक लिंग भी होता है जो न तो स्त्रीलिंग होता है न पुल्लिंग. इस प्रकार वे इस बात को पहचानते हैं कि हर किसी वस्तु या व्यक्ति का स्त्री या पुरुष होना जरूरी नहीं है.
मनुष्य भी वास्तव में तीन लिंगों में जन्म लेता है: पुरुष के रूप में, स्त्री के रूप में, एवं एक तीसरे रूप में जो स्त्रीपुरुष के भेद से मुक्त है. इन लोगों की संख्या स्त्री एवं पुरुष की तुलना में इतनी कम होती है लोग अनजाने इनको असामान्य और अस्वीकार्य मान लेते हैं. लेकिन ऐसा हर समाज में नहीं होता है. कई समाजों में इनको अन्य लोगों के समान बराबर मिलता है. भारतीय समाज में भी यह परिवर्तन आना जरूरी है.
जब तक यह परिवर्तन नहीं आयगा, तब तक "अहं ब्रह्मास्मि" कहने वाला एक तबका दर्द सहता रहेगा. इनके दर्द को डॉ रूपेश ने एक हृदयस्पर्शी कविता में व्यक्त किया है जिसकी दो पंक्तियां हैं:
लज्जा का विषय क्यों हूं अम्मा मेरी?
अंधा,बहरा या मनोरोगी तो नहीं था मैं
मेरा अनुरोध है कि आप क्योंकि मैं हिजड़ा हूं.......... पर चटका लगा कर पूरी कविता एक बार जरूर पढें!
2 टिप्पणियां:
यह कैसी विडम्बना है कि कई मांबाप अपने बच्चों को अपना कहने से इसलिये हिचकते हैं कि उनका लिंग समाज के बहुतजन से नहीं मिलताजुलता है.
आपने सही कहा है कि जो मनुष्य ईश्वर के रूप में सृजा गया है उसके साथ यह बहुत ज्यादती है एवं एक सामाजिक परिवर्तन के लिये लोगों को एकजुट हो जाना चाहिये
सस्नेह -- शास्त्री
प्रिय मित्र,कविता को पढ़ने,उसे आत्मसात करने,स्वीकारने के लिये जो सरलता चाहिये वो अभी शायद ब्लागर समाज में दुर्लभ है,किन्तु ये जरूर सच है कि ये ब्लागर जन समलैगिकों यथा "गे" व "लेस्बियन" संबंधों के प्रति सहानुभूति दर्शाने से नहीं चूकते हैं अपना बड़प्पन दिखाने व बड़ी सोच जताने के लिये......
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