आदरणीय वाचकों, आलोचकों, समीक्षकों, सहयोगियों,अभिभावकों
चूंकि मेरी धर्मपुत्री भूमिका रूपेश ने अपनी पोस्ट में लिखा है कि उसकी पोस्ट पर आयी किसी भी टिप्पणी को प्रकाशित न करा जाए इसलिये उसके विरोध के स्वर को समर्थन देता हुआ मैं भी ये कह रहा हूं कि यदि इन बच्चों को अपनी जगह बनानी है तो समाज की धारणाओं में थोड़ी नोच-खसोट और धक्का-मुक्की तो इन्हें करनी ही पड़ रही है वरना होना तो ये चाहिये कि जिस तरह महिलाओं की पत्रिकाओं को पुरुष चटकारे ले कर पढ़ते हैं और पुरुषों की पत्रिका स्त्रियां छिप कर पढ़ती हैं तो लैंगिक विकलांगता के प्रति इतना कौतूहल रखने वाले समाज को बहुत अच्छा प्रतिसाद देना चाहिये था लेकिन ऐसा हुआ नहीं। यहां ब्लागिंग में भी ढकोसलेबाज,मुखौटेधारी किस्म के लोग हैं जिन पर मुझे ही नहीं हम सबको संदेह है कि ये वही माता,पिता,भाई,बहन,चाचा,मामा,बुआ,फूफा आदि हैं जिन्होंने मेरे बच्चों को अपनी सड़ी सोच के चलते इस हाल में धकेल दिया है। यही लोग जिम्मेदार हैं जो मुंह छिपा रहे हैं अब इन बच्चों के सामने आ जाने से। हो सकता है कि अगर दुर्दैव से इनमें से किसी ब्लागर के घर कोई लैंगिक विकलांग बच्चा पैदा हो जाए तो ये उसे चोरी-छिपे मेरे घर के बाहर फेंक जाएं; इसलिये हे ब्लागरों में तुम्हारे ऐसे बच्चों को गोद में लेकर बोतल से दूध पिलाने, कंधे पर बैठा कर खेलने और उंगली पकड़ा कर चलना सिखाने के लिये तैयार हूं। हमारा स्वर तुम्हारी दुर्गंधित सोच का विरोध करने के लिये अब मुखर हो रहा है। जिन लोगों ने भूमिका रूपेश की पिछली पोस्ट पर हिजड़ा बन जाने की बात पर भी मुस्कराते हुये टिप्पणी करी है मैं उन्हें अपने पोस्ट से संलग्न करके सधन्यवाद प्रकाशित कर रहा हूं।
aapme badhiya likhne ki shakti hai...aur ye shakti har kisi me nahi hoti. ishwar ka shukriya karen ki aapka man ek lekhak ka hai. shubhkamnayen... Dileepraaj Nagpal
maine aapki saari post's dekhi. aapke shabdo mein kuchh to hai..main ho sakta hai koi tippani nahi kar saku par blog lagatar dekhta rahta hu.... संदीप शर्मा Sandeep sharma
अब देखना ये है कि आप भूमिका रूपेश जैसे बच्चों का विश्वास हासिल कर पाते हैं या नहीं वरना ऐसे बच्चे आपको ही वो भाई या बहन और माता-पिता मानते रहेंगे कि जिन्होंने उन्हें सड़को पर फेंक दिया है।
बुधवार, 26 नवंबर 2008
ब्लागरों! आपका कोई लैंगिक विकलांग बच्चा हो तो उसे फेंकना मत मुझे दे देना......
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2 टिप्पणियां:
प्रिय डॉ रूपेश, जब भूमिका ने और अन्य लैंगिक विकलांगों ने तुम को पिता का स्थान दे दिया है तो अब तुम्हारी जिम्मेदारी है कि उनको समझाओ कि हर परिवर्तन के लिये समय लगता है.
एक डॉक्टर जानता है कि कई बीमारियों में लगातार दवा देने पर भी स्वास्थ्य सुधार में समय लगता है. सामाजिक परिवर्तन भी समय लेता है.
इस दौरान समाज की बुराई करने से कुछ नहीं होगा. बल्कि जो लोग बदलने के लिये तय्यार हैं उनकी सोच को बदलने के लिये धीरे धीरे कार्य करना होगा.
सस्नेह -- शास्त्री
आदरणीय गुरूवर्यसम शास्त्री जी,बच्चे हैं इन सबको समझाने के लिये कभी-कभी इनकी ही तरह तुतला कर बोलना पड़ता है वरना ये सोचते हैं कि डैडी तो हम सब से अलग और बड़े हैं फिर वे खुलते नहीं है,मन की बातें नहीं बताते,साथ में खेलते नहीं गाना नहीं गाते,पंजा नहीं लड़ाते,कुश्ती नहीं लड़ते,खाना नहीं खाते....
यह गुरुतर रिश्ते का वजन मैं जानता हूं कि कैसे उठाऊं इसीलिये यदा-कदा अपने बच्चों के सुर में बोलता हूं,कठोरता क्षम्य रहे....
सादर चरणालिंगन
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