रविवार, 30 नवंबर 2008

बौद्धिक आतंकवाद यानि एड्स नामक अस्तित्त्वहीन बीमारी की अवधारणा



दुनिया भर में फैलाए गये एक अलग किस्म के आतंकवाद को आज जश्न के रूप में मनाया जा रहा है। ये बौद्धिक आतंकवाद उस आतंकवाद से कहीं ज्यादा खतरनाक है जो कि बम और बारूद से फैलाया गया है। कुछ बरस पहले इसे एड्स नामक बीमारी की अवधारणा के रूप में शुरू करा गया था और अब ये पूरे संसार में जड़ें जमा चुका है। इसलिये इसी खुशी को विश्व एड्स दिवस के रूप में मनाया जाता है। जबकि यह बीमारी वैसी ही है कि अंधेरे में भूत रहता है। इस विषय में डा.रूपेश श्रीवास्तव ने तो इस पूरे आतंकवाद से अकेले ही टकराने की ठानी है और यदि कोई भी इस विषय में अधिक जानना चाहे तो उनके लिखे शोधपत्र की प्रति मंगवा कर पढ़ ले। एड्स एक अस्तित्त्वहीन बीमारी है जिसे बड़े ही योजनाबद्ध तरीके से जमाया गया है।

4 टिप्‍पणियां:

Shastri JC Philip ने कहा…

एड्स के बारे में आपकी सोच, आपके अनुसंधान, के बारे में जानने की बडी उत्सुकता है.

सस्नेह -- शास्त्री

बेनामी ने कहा…

kindly send me the copy of that research paper on AIDS

रोमेंद्र सागर ने कहा…

हालांकि मैं इस विषय पर ना तो कोई आधिकारिक हैसियत रखता हूँ और ना ही चिकित्सा विज्ञान में किसी तरह का कोई दखल है मेरा लेकिन मुझे बारम्बार यही लगता है कि ऐड्स वाकई में ही अंधेरे में बैठा एक भूत है जिसका कोई भौतिक अस्तित्व हो या ना हो , वैचारिक स्तर पर तो खासा हौवा पूरे विश्व के सर पर सवार हो चुका है।
कभी कभी तो मुझे यह एक अच्छी खासी साजिश दिखाई देती है जिसके तहत अरबों खरबों रुपया एंटी किया जा रहा है....

मगर सवाल यह उठता है कि इस बात कि सच्चाई तक कोई जाए कैसे और कैसे कोई यह साबित करे के यह औने पौने लूट का ऐसा तमाशा है जिसमें छोटे बड़े कितने ही राष्ट्र अपनी अपनी जेबें गरम कर रहें हैं !

डा रूपेश श्रीवास्तव का शोध पत्र पड़ने कि उत्सुकता बढ गयी है....हो सके तो मुह्हैय्या करवा दें !

इरशाद अली ने कहा…

डा रूपेश श्रीवास्तव का शोध पत्र kase prapt kare.
Irsahd

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आयुषवेद by डॉ.रूपेश श्रीवास्तव